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Showing posts from January 28, 2018

सवाल

मेरे कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके इस लायक नहीं हो तुम। मैं जानना चाहता हूँ, क्या रकीब के साथ भी चलते हुए शाम को यूं हीे बेखयाली में उसके साथ भी हाथ टकरा जाता है तुम्हारा, क्या अपनी छोटी ऊँगली से उसका भी हाथ थाम लिया करती हो क्या वैसे ही जैसे मेरा थामा करती थीं क्या बता दीं बचपन की सारी कहानियां तुमने उसको जैसे मुझको रात रात भर बैठ कर सुनाई थी तुमने क्या तुमने बताया उसको कि पांच के आगे की हिंदी की गिनती आती नहीं तुमको वो सारी तस्वीरें जो तुम्हारे पापा के साथ, तुम्हारे भाई के साथ की थी, जिनमे तुम बड़ी प्यारी लगीं, क्या उसे भी दिखा दी तुमने ये कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूँछूगा तुमसे क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके इस लायक नहीं हो तुम मैं पूंछना चाहता हूँ कि क्या वो भी जब घर छोड़ने आता है तुमको तो सीढ़ियों पर आँखें मीच कर क्या मेरी ही तरह उसके भी सामने माथा आगे कर देती हो तुम वैसे ही, जैसे मेरे सामने किया करतीं थीं सर्द रातों में, बंद कमरों में क्या वो भी मेरी तरह तुम्हारी नंगी पीठ पर अपनी उँगलियों से हर

वक्त

वक्त की कैद में , जिंदगी है मगर , चंद घड़ियाँ यही हैं  जो आज़ाद हैं  इनको खो कर, मेरे जानेजां, उम्र भर  न तरसते रहो  यूँ तो ये बोल कई बार सुने थे, आज पर, ये समझे गए हैं  हम सभी को इतने काम हैं  के हम सभी वक्त के गुलाम हैं , पर सच कहो, सच सच कहो,  क्या वाकई तुम इतने "बिजी" हो ? खैर  यही चंद चाँद बचे हैं, यही थोड़ा टहलना बचा है, थोड़े से ही मौके हैं, इन्हे खो  दोगे फिर रोओगे , चीखोगे , चिल्लाओगे , हाथ मलोगे पर अफ़सोस अफ़सोस ये कोई समझ न सका और वक्त को भी वो बांध सका, सूखी सी उस शाख के जैसा अकड़ा। और वक़्त की कीमत को कभी न पकड़ा। वो बस यही सोचता रह गया वक्त है अभी , देख लूंगा, कर लूंगा, मिल लूंगा ये कहते सोचते वक़्त बीतते देखता रह गया सोचो सोचो जाने कितना तरसा होगा वो उसी वक़्त के लिए जिसे वो पीछे छोड़ आया था सोचो गर तुम्हे किसी से कुछ हो कहना, कुछ सुनना कुछ पूरा करना या अधूरा करना तो कर दो बस जो भी वक़्त हो जैसा भी, जितना भी खुल कर जिओ इतंजार मत करो क्युकी वक़्त तुम्हारा नहीं करेगा, इंतजार